Quill Bharat

Eid- Al- Adha Bakreid 2024 date in india 17,18 june 2024 in india know history and importance of eid-ul-Adha in hindi

Eid -Al-adha ( Bakreid )2024-ईद -उल-अजहा मुस्लमान क्यों मानते हैं? इसका इतिहास क्या है ?कब से शुरुआत हुई ?

Baqreid 2024 date in india 17,18 june 2024 in india know history and importance of eid-ul-Adha in hindi

Bakrid 2024 in india :-

bakrid या ईद-अल अज़हा मुसलमानो का बहुत  ही महवपूर्ण त्योहार में से एक है यह हर साल ईद -उल-अज़हा  के महीने में 10  दस, 11 ग्यारह, 12 बारह तारीख को जिसमे दसवां दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है   मनाया जाता है जो की बलिदान देने वाला त्योहार से भी याद किया जाता है इस दिन का सबसे महत्वपूर्ण पार्था यह है की लोग आपस में मिलते जुलते हैं और एक दूसरे को मुबारक बाद देते हैं खुशियों का आपस में साझा करते हैं और रिश्तेदार और गरीबों में क़ुरबानी किया गया बकरा दुम्बा का मांस बांटतें हैं   इस साल 2024 में 17 या 18 जून को मनाया जायेगा ईद -अल- अज़हा पैगम्बर इब्राहिम की बेटे की अल्लाह के लिए क़ुरबानी की कहानी को याद करता है

Bakreid की शुरुआत कब से हुई :-

bakreid (eid – al -adha ) मुसलमानो का सबसे बड़ा पर्वों में से दूसरा सबसे बड़ा पर्व बकरीद (ईद अल अज़हा ) मनाया जाता है मुसलमानो के धार्मिक ग्रंथों के अनुसार  यह पर्व इब्राहिम अलैहिस्सलाम जो एक सच्चे और धार्मिक नबी थे जो एक सामाजिक कार्य करता थे और लगों को अच्छी अच्छी बातें बताते और फ़ायदा पहुंचाते थे एक ज़माने  की बात है की इब्राहिम अलैहिस्सलाम बुढ़ापा को पहुँच गए लेकिन कोई संतान नहीं हुई थी  तो ईश्वर ने उन्हें बुढ़ापे में एक बेटा  दिया जिस से  वो बहुत प्यार किय करते थे जैसा की सब लोग अपने बच्चे से करते हैं  तो  उनके ईश्वर ने उनका परीक्षा  लेना चाहा तो वो सपने में ईश्वर ने दिखाया की जिससे  आपको सबसे ज्यादा  प्यार हो उसे आप ईश्वर के लिए क़ुरबानी करे ईश्वर के लिए  लेकिन उन्होंने ऊंट को क़ुर्बान किया इसके बाद भी सपना आता  ही रहा तब जाकर उनको समझ  में आ गया की  जो बेटा काफी इंतज़ार के बाद जन्म हुआ है हसको ईश्वर के लिए कुर्बान करना है और उन्होंने ईश्वर के तरफ से लिया गया परीक्षा में वो सफल रहे और उन्होंने अपने बेटे इस्माईल को लेकर क़ुर्बान गाह  गए और क़ुरबानी की जगह लेटा  भी दिया लेकिन ईश्वर को तो परीक्षा      लेना था जिसमे वो सफल हुए और उनके बेटे इस्माइल के जगह पर ईश्वर ने दुम्बा को उसके जगह क़ुर्बान करवाया और इसी दिन से  इस प्रथा को याद किया जाता है जो की पूरी दुनियां के मुस्लमान आज तक इस पार्था को अपनाते आरहे हैं!

Exit mobile version